“आतुरे ,व्यसने प्राप्ते ,दुर्भिक्षे शत्रुसंकटे ,राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बांधव:”
अर्थात :- बिमारी में, विपत्तिकाल में ,अकाल के समय ,दुश्मनो से दुःख आने पर राज द्वार ( गवाही के समय और श्मशान में जो साथ दे वही सच्चा बंधू होता है। चाणक्य निति
Pandit Joshi
“आतुरे ,व्यसने प्राप्ते ,दुर्भिक्षे शत्रुसंकटे ,राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बांधव:”
अर्थात :- बिमारी में, विपत्तिकाल में ,अकाल के समय ,दुश्मनो से दुःख आने पर राज द्वार ( गवाही के समय और श्मशान में जो साथ दे वही सच्चा बंधू होता है। चाणक्य निति